जानिए वास्तु और विज्ञान में संबंध और वास्तु ज्योतिष का जीवन में महत्व

वास्तु तथा ज्योतिष दोनों को एक-दूसरे का पूरक और अभिन्न अंश कहा जा सकता हैं। जैसे मानवीय शरीर का अपने अंगों के साथ अटूट संबंध होता है।

ज्योतिष विज्ञान में व्यक्ति के जीवन की कई घटनाओं का अध्ययन किया जाता है दूसरी ओर वास्तु विज्ञान में भवन से संबंधित जानकारियां होती हैं।घर का रख रखाव,संरचना,साज – सज्जा एवम व्यवस्था से जुड़ा हुआ शास्त्र है। हालाकि दोनों का उद्देश्य एक ही है जो कि मानव जीवन को बेहतर और शांतिपूर्ण बनाना है।

सरल शब्दों में कहा जाए तो वास्तु शास्त्र के उपयोग से वातावरण में व्याप्त ऊर्जा को संतुलित रुप में प्राप्त कर, जीवन में प्रगति, सफलता एवम अधिकतम सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करना है।

वास्तु सिद्धांत के हिसाब से निर्मित घरों में रहने वाले लोगों का जीवन, प्रगति,अच्छे स्वास्थ्य व शांति का परिचायक होता है।

वास्तु विज्ञान प्राचीन भारत का एक बहुत प्रसिद्ध शास्त्र है। जिसमें वास्तु,भवन निर्माण के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान की गई है।ऐसा माना जाता है वास्तु विज्ञान के नियम प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।प्रकृति में विभिन्न बल उपस्थित हैं जिनमें जल, वायु ,पृथ्वी,अग्नि एवम आकाश सम्मिलित हैं।इन सभी तत्वों के बीच आपस में क्रिया होती रहती है,जिसका प्रभाव पृथ्वी पर रहने वाले हर एक प्राणी पर पड़ता है।

वास्तु ज्योतिष के मतानुसार इस पूरी प्रक्रिया का प्रभाव हमारे स्वभाव, कार्य प्रदर्शन,भाग्य और जीवन के अन्य अंशों पर पड़ता है।
इसके अलावा यन्त्र, मंत्र तथा मांगलिक प्रतीकों का विशेष धार्मिक महत्त्व है, इनसे द्वारा उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से व्यक्ति के विचारों में सकारात्मकता बढ़ती है।

अब बात करते हैं दिशाओं की तो अलग अलग दिशाओं को दोषमुक्त करने के लिए ज्योतिष के आधार पर दिशाओं के जो स्वामी है उनके प्रतिनिधित्व रंग के हिसाब से रंगों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।उसके साथ ही,अनुचित दिशा में बढे प्लाट के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए भी उचित उपाय बताए जाते हैं।

अब हम आपको कुछ उदाहरण दे कर समझाएंगे के किस प्रकार से वास्तु विज्ञान आपका मार्गदर्शन करता है –

१.वास्तु विज्ञान के अनुसार घर में जल का स्रोत ईशान कोण में होना शुभ माना गया है। ईशान कोण में उपस्थित जल के स्रोत पर पड़नेवाली सूर्य की किरणें पानी में पैदा होनेवाले नुकसानदायक बैक्टीरिया एवम किटाणुओं को नष्ट करती हैं। और विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है कि सूर्य से आने वाली विकिरणों में नुकसानदायक किटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है।

२. वास्तु कहता है कि दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोना बेहतर होता है ।व्यक्ति का सिर चुंबक के उत्तरी ध्रुव तथा पैर दक्षिणी ध्रुव की तरह कार्य करते हैं। सिर उत्तर की तरफ रखकर सोने से पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से दोनों में विकर्षण पैदा होता है, जिससे शरीर का रक्त प्रवाह बाधित होता है।इसलिए बेहतर सेहत के लिए सिर दक्षिण दिशा में और पैर उत्तर दिशा में करके सोने की सलाह दी जाती है।

सिर्फ यही नहीं , वास्तु के लगभग सभी मार्गदर्शन साइंटिफिक तौर पर जुड़े होते हैं। इससे यह सिद्ध होता है के वास्तु चमत्कारिक नहीं प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति के हिसाब से कार्य करता है।

Author: Vastushastri-Achary Gopal Dhomne

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